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अभिनेता सोहम शाहमेघना गुलजार की बहुप्रशंसित फिल्म "तलवार" में इरफान खान के साथ नजर आ चुके हैं। हाल ही में सोहम ने इरफान के साथ काम करने के अपने अनुभव को शेयर करते हुए उन्हें याद किया है।
तलवार में इरफान खान के साथ काम करने पर सोहम शाह ने कहा, "मुझे उनके साथ काम करने का बहुत अच्छा अनुभव मिला। वह सेट पर सबसे अधिक चिल्ड-आउट अभिनेता थे। वह शॉट्स के बीच सुझाव देते थे इसलिए मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। वह कैमरे के पीछे एक अलग व्यक्ति होते थे। एक चीज जो मैंने उनसे सीखी है वह है इस क्षण में रहना। वह आराम से रहते थे और चीजों पर चिंता या तनाव नहीं करते थे। उन्हें लगता था कि एक बार जब आप आराम कर लेते हैं तो आप स्थिति पर नियंत्रण रखते हैं। उनका अपने दिमाग पर अद्भुत नियंत्रण था।”
सोहम इरफान खान से फिल्म लंच बॉक्स की पार्टी में पहली बार मिले थे, जहां उन्होंने एक दूसरे के काम की तारीफ की थी। सोहम आगे कहते है"सबसे प्रतिभाशाली और बहुमुखी अभिनेताओं में से एक होने के बावजूद, वह खुद को बेहतर बनाने के तरीकों की तलाश में थे । वह एक अभिनेता के रूप में ही नहीं बल्कि एक इंसान के रूप में भी बहुत आगे थे।”
जब सोहम को इरफान के निधन के बारे में पता चला तो वह पूरी तरह से निराश हो गए और वह अवाक रह गए थे। उन्होंने अपनी पिछली फिल्म से सबको चौका दिया था। कैंसर से जूझने के बावजूद भी वे मजबूती से खड़े रहे और किसी ने कभी नहीं सोचा था कि वह हमें इतनी जल्दी छोड़ जाएंगे। मैंने एक महान अभिनेता के रूप में उन्हें देखा। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। यह फिल्म उद्योग के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। इंडस्ट्री ने एक रत्न खो दिया है और यह एक अपूरणीय क्षति है।
सोनू सूद लगातार प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के काम में लगे हुए हैं। हाल ही में उन्होंने एक पोस्ट के जरिए बताया कि उन्हें तेजी से लोगों के मैसेज आ रहे हैं। इस नेक कदम के चलते सोनू खुद दिन रात एक कर चुके हैं जिसके चलते वो महज 4 से 5 घंटे ही सो रहे हैं। हाल ही में भास्कर से बातचीत के दौरान सोनू की पत्नी सोनाली ने उनके रूटीन को लेकर कई बातें शेयर की हैं।
इन दिनों जाहिर तौर पर सोनू बहुत बिजी हैं। आम दिनों में भी शूट के चलते बिजी रहते हैं , मगर इस टाइम पर उन्होंने जिस काम का बीड़ा उठाया है, वह बहुत बड़ा है। मैं उन पर बहुत गर्व महसूस करती हूं कि वह यह काम कर पा रहे हैं। मैं लकी समझती हूं कि हमें मौका मिला।
18 घंटे काम कर रहे हैं सोनू
उनका रूटीन बहुत अनुशासित रहा है। सोनू इतना बिजी रहने के बावजूद भी अपने रूटीन को बरकरार रख रहे हैं। वह सुबह जल्दी उठ जाते हैं। मुश्किल से 4 से 5 घंटे ही उनकी नींद होती है। दिन के 18 घंटे काम करते हैं वह।
लगातार आते हैं लोगों के फोन
शुरू में जब उन्होंने यह काम शुरू किया था तो पहल में 350 माइग्रेंट्स को भेजा था तब तो वह अकेले ही सब कुछ संभाल रहे थे। मगर अब दो-तीन लोगों की टीम है। सारा दिन फोन पर बिजी रहते हैं। कॉर्डिनेट कर रहे होते हैं। परमिशन ले रहे होते हैं। बहुत लोगों को फोन करते है। ऐसे माहौल में परमिशन लेना मुश्किल होता है, लेकिन सोनू ने ठान ली थी। वह बहुत ज्यादा बिजी रहते हैं।
मजदूर का दर्द सुनकर किया मदद करने का फैसला
हमने लॉकडाउन की शुरुआत में कई जगहों पर राशन और फूड के स्टॉल लगाए थे। ठाणे इलाके की बस्तियों में भी हम लोग जाते थे। वहां एक दिन राशन बांटते वक्त उन्होंने देखा कि कुछ मजदूर तेज धूप में कहीं जा रहे हैं। तब उन्होंने रोककर पूछा तो पता चला कि वह लोग गांव जा रहे हैं। सोनू ने उन्हें रोकना चाहा, पर प्रवासियों ने कहा कि यहां रुके तो भूखे मर जाएंगे। सोशल मीडिया पर कुछ विजुअल्स हमने देखे। कुछ लोग अपने बूढ़े मां-बाप को गोद में लेकर जा रहे हैं। कईयों के छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन तस्वीरों को देखने के बाद सोनू कई रातें सो नहीं पाए। उसके बाद से उन्होंने पैदल के बजाय बसों से माइग्रेंट्स को भेजना शुरू किया।
घर वालों को होती है फिक्र
घर से सोनू निकलते हैं तो टेंशन होती है। उन्हें लगातार हिदायत देती रहती हूं कि अपना फेस टच मत करो, किसी के नजदीक हो तो ध्यान से बातें करो, अपने हाथों को सैनिटाइज करते रहो। वह भी मुझे अश्योर करते रहते हैं कि मैं ध्यान रखूंगा। फिर भी वह बाहर जाते हैं तो मैं चिंतित तो होती हूं। शाम को जब वह लौटते हैं तो घर के एंट्रेंस पर ही सैनिटाइजर वगैरह होते हैं। मैं उन्हें सीधा वॉशरूम में भेजती हूं। नहाने के बाद ही अंदर आते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वह कुछ भी टच ना कर रहे हो। यह सुनने में अजीब लग रहा हो, लेकिन इस माहौल में डरे रहना भी जरूरी है।
एक्सरसाइज करना छोड़ दिया
उनका रेगुलर रूटीन तो खैर फोन पर रहने, कॉर्डिनेट करने तक सीमित रह गया है। हर लौट के माइग्रेंट्स को भेजने के बाद वह यह सोचते रहते हैं कि और माइग्रेंट्स को कैसे भेजा जाए। मैं उन्हें जब से जानती हूं तब से लेकर अब तक में पहली बार उनका एक्सरसाइज करना बंद हुआ है। पिछले 15-20 दिनों से उन्होंने एक्सरसाइज का भी मुंह नहीं देखा है। वह सोच रहे हैं कि डेढ़ दो घंटा जो उनका एक्सरसाइज में जाएगा, उससे अधिक जरूरी मजदूरों की मदद करना है।
मिलकर बना रहे हैं लिस्ट
इस मुहीम में मैं भी उनकी मदद कर रही हूं। मुझे भी काफी जगहों से कॉल आती रहती हैं। तो मैं भी लिस्ट बनाती रहती हूं। जितने भी मुझे कॉन्टैक्ट्स मिलते हैं या इंफॉर्मेशन मिलती है तो मैं उसकी अलग से लिस्ट बनाकर अपनी टीम को इनफॉर्म करती रहती हूं। हम लोग साथ-साथ लिस्ट बना रहे होते हैं। जितना बड़ा काम है यह कि इसमें जितने भी लोग जुड़ते रहें, उतना कम है।
मदद करके मिल रही है खुशी
दुर्भाग्य से वह मजदूर जिन्होंने हमारे लिए सड़कें बनाईं इमारतें खड़ी की, वह खुद बेघर हैं। खाने को कुछ नहीं है उनके पास। पर मुझे लगता है कि हम आगे बढ़कर इनके लिए कुछ कर पाए। यह एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम थी, जिसे एड्रेस करना बहुत जरूरी था। यह ऐसा काम है, जिसमें टाइम वेस्ट नहीं कर सकते। इंतजार नहीं कर सकते। मजदूर कहते हैं कि उनको कोरोना से डर नहीं है उनको भूखे मरने से डर है। खुशी है कि सोनू दिन-रात लगकर कुछ कर पा रहे हैं।
सोनू का काम सराहनीय हैं- सोनाली
सोनू को मैं बरसों से जानती हूं शादी से पहले कुछ साल हमने डेट भी किया था। उनकी एक आदत है, जो शायद लोगों को पता ना हो कि वह जिस काम के पीछे पड़ जाते हैं, उसको अंजाम तक पहुंचाएं बिना नहीं रुकते। मैंने यह क्वालिटी बहुत कम लोगों में देखी है। हर कोई अच्छा काम करना चाहते हैं, लेकिन पहल करके उसको लगातार करना यह कम लोगों में मैंने देखा है। माइग्रेंट वर्कर्स की भो सिचुएशन देखी जाए तो सब लोग सांत्वना दे रहे थे। सब को बुरा लग रहा था। लेकिन आगे बढ़कर ऐसे टाइम पर जब लोग अपने घर से निकलने को डरते हैं सोनू हिम्मत करके आगे बढ़ रहे हैं। यह बहुत ही सराहनीय है।
लॉकडाउन के चलते देशभर में सिनेमाघर बंद हैं। इसकी वजह से हिंदी और साउथ की फिल्में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो रही हैं। ऐसे में सिनेमाघर की रिलीज से पहले की जाने वाली स्क्रीनिंग की ही तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म भी फिल्मों की भी डिजिटल स्क्रीनिंग कर रहे है। 29 मई से अमेजन पर स्ट्रीम होने वाली साउथ सिनेमा की पोनमगल वंथल हिंदुस्तान की पहली ऐसी फिल्म बन गई है जिसकी स्टार स्क्रीनिंग सिनेमाघरों में नहीं बल्कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हुई है।
फिल्म में एक वकील का लीड रोल निभाने वाली ज्योतिका कहती है, हम उत्साहित हैं कि पोनमगल वंधल 29 मई 2020 को डायरेक्ट-टू-स्ट्रीम पर लॉन्च होने वाली पहली तमिल फिल्म है। प्रत्येक अभिनेता चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं की तलाश में होता है जो उनके अभिनय को अधिक ऊंचाइयों तक ले जाने में मदद करता है और मेरे किरदार वेनबा के रूप में मेरी सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस सामने आई है। मुझे खुशी है कि मैंने एक ऐसी फिल्म में काम किया है जो एक मजबूत महिला चरित्र को चित्रित करती है और न्याय की तलाश में एक लंबा सफर तय करेगी।
वहीं साउथ सूपरस्टार और फिल्म के प्रोड्यूसर सूर्या ने कहा, प्रत्येक अभिनेता के पास ऐसी फिल्में होती हैं जिनमें उन्होंने खुद का एक बड़ा हिस्सा निवेश किया होता है। यह ज्योतिका के लिए एक ऐसी फिल्म है जिसने उन्हें एक ही फिल्म में 5 दिग्गज अभिनेताओं के साथ काम करने के लिए उत्साहित किया है। मैं थ्रिलर का भी बहुत बड़ा प्रशंसक हूं और यह फिल्म मुझे एक दर्शक और एक निर्माता के रूप में भी संतुष्ट करती है। हम अमेजॅन प्राइम वीडियो के साथ जुड़ने से भी खुश हैं जो इस कंटेंट को 200 से अधिक देशों और क्षेत्रों में पेश करेगा।
2डी एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित, इस लीगल ड्रामा में ज्योतिका एक पावर-पैक परफॉर्मेंस के साथ एक वकील का किरदार निभा रहीं है। पोनमगल वंधल बैनर 2डी एंटरटेनमेंट के तहत ज्योतिका और सूर्या का प्रोडक्शन है। फिल्म का निर्देशन जे.जे. फ्रेड्रिक ने किया है।
बतौर प्रोड्यूसर अनुष्का शर्मा लगातार लीक से हटे हुए कंटेंट प्रोड्यूस कर रही हैं। इन दिनों उनका वेब शो पाताल लोक कई कारणों से लगातार चर्चा में है। अनुष्का खुश और संतुष्ट हैं कि उन्होंने जिस कंटेंट पर यकीन किया था, उसे काफी चर्चा मिल रही है। इस बारे में बात करते हुए अनुष्का ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की है।
शो के क्रिमिनल को थोड़ा सा ह्यूमनआईज किया गया है। ऐसा क्यों?
हमने किसी को ह्यूमनआईज करने की कोशिश नहीं की है। हमने दिखाया है कि हर इंसान के पीछे एक कहानी होती है। और जो वह करता है, जहां उसकी परवरिश हुई है, वह उसका फाइनल प्रोडक्ट होता है। हमने किसी के भी एक्शन को ग्लोरिफाई करने की कोशिश नहीं की है। हमने एक नजरिया दिखाया है। ऑडियंस पर छोड़ दिया है कि वह उस पर अपनी क्या राय बनाते हैं?
जोखिम वाले विषयों बनाने का माद्दा कहां से लाती हैं?
जो भी सब्जेक्ट मैं हाथ में लेती हूं, उसे प्रामाणिकता के साथ पेश करने की कोशिश करती हूं। पाताल लोक के साथ भी ऐसा ही किया। कहानी, किरदार और परिवेश के बहुत करीब रहे। आज जब शो चर्चा में है, सराहा जा रहा है तो बहुत खुशी हो रही है। बहुत अच्छा लग रहा है, जब लोगों से सुनने को मिलता है कि इंडिया का बेहतरीन थ्रिलर वेब शो हमने बनाया है।
भाई कर्णेश के साथ किस तरहडिस्कशन हुआ था
उन्हें भी उसी तरह का काम पसंद है, जैसा पूरी दुनिया में हो रहा है। मेरा मानना है कि ओटीटी प्लेटफार्म आप को ऐसे कंटेंट बनाने में प्रेरित करते हैं, जो एक साथ दुनिया के किसी कोने में कनेक्ट कर सकें।पाताल लोक को लेकर साथी फिल्मकार और कलाकार के बड़े अच्छे रिव्युज आ रहे हैं। लिहाजा बतौर प्रोड्यूसर खुशी होती है कि संपूर्णता में राइटिंग, डायरेक्शन, लोकेशन व जो भी हमने बेक बनाया, वह लोगों को पसंद आ रहाहै। यह सिर्फ मेरी नहीं, इससे जुड़े हर एक इंसान की जीत है।
समाज, सिस्टम का क्रूर चेहरा इतने करीब से दिखाना पहले से तय था?
जी हां। इस वेब शो का बेस्ट पार्ट यह था कि हमने अपनी तरफ से कोई जजमेंट नहीं पास किया। हमने समाज के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाया। यह बताया कि बतौर इंसान हम सभ्य समाज के निर्माण में असफल रहे हैं। ताकतवर बने रहने के लिए इंसानियत का गला घोंटते रहे हैं। समाज की सबसे पेचीदा चीज को सबसे अनासक्त भाव से कहा है।
जमुनापार से पाताल लोक कैसे हुआ नाम
हमें लगा पाताल लोग बेहतर नाम है। और यह हमारे शो और स्टोरी को बेहतर तरीके से रिप्रेजेंट कर रहा है।
आगे कैसे वैब शोज और फिल्में करने वाली हैं?
हम जॉनर नहीं सोचते। कहानियों के बारे में सोचते हैं। जब हमें लगेगा कि कोई कहानी अलग, नई और स्पेशल है और उसे कहना है तो हम लोग वह प्रोड्यूस करते रहेंगे।
डिजिटल प्लेटफॉर्म कितना बड़ा होता दिख रहा है?
इस समय पर तो लगता है। एक वजह तो है कि हम सबों के लिए, जब हमारे पास काम करने के लिए कुछ नहीं है तो कम से कम इस प्लेटफार्म की वजह से कुछ कहानियां देखने को मिल रही हैं। ऐसा सिर्फ इंडिया में नहीं, बल्कि दुनिया भर में हो रहा है। जाहिर है यह एक नया जरिया हो सकता है एंटरटेनमेंट का।
बॉलीवुड अभिनेत्री सौन्दर्या शर्मा पिछले 2 माह से अमेरिका में फंसी हुई है। लॉकडाउन के चलते वे देश वापसी करने में असमर्थ हैं, लेकिन वहां अकेले रहकर भी वे इस समय जरूरतमंदों की मदद कर रही है। दैनिक भास्कर से खास बातचीत के तहत सौन्दर्या ने बताया कि वह कैसे घर से खाना बनाकर जरूरतमंदों को खिला रही हैं।
सौन्दर्या बताती हैं "मेरे घर के आसपास मुझे कुछ जरूरतमंद लोग नजर आए जोकि खाने के अभाव में काफी परेशान थे। वे लोग हमेशा से ही खाने के लिए कम्युनिटी सेंटर और शेल्टर होम पर डिपेंडेंट थे लेकिन कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से मैंने खाने के अभाव में उन्हें काफी परेशान देखा और इसीलिए मैंने यह डिसाइड किया कि मैं अपने घर से ही खाना बनाकर उन्हें खिलाया करूंगी।
जरुरतमंद लोगों को खाना खिलाकर सुकून मिलता है
कोरोनावायरस की मार ने पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में बांधा है जहां हम सब एक दूसरे की मदद कर रहे हैं। अपने लिए तो मैं वैसे भी रोज ही खाना बनाती हूं पर किसी जरूरतमंद के लिए खाना बनाना मैं बहुत सुकून मिलता है। वैसे भी भारतीय संस्कृति में हम सभी को हमेशा मदद के लिए हाथ बढ़ाने के लिए जाना जाता है। यही मैंने सीखा है और इसी चीज का मैं पालन कर रही हूं। उनकी दुआएं की कोई कीमत नहीं है और उनके लिए खाना बनाना मुझे शक्ति और प्रेरणा देता है कि मैं विदेश में अकेली रह सकूं।
लॉकडाउन में व्यस्त रहने की कोशिश
इस खाली समय में मैं स्पैनिश सीख रही हूं, गार्डनिंग कर रही हूं अपने आपको बिजी रखने की कोशिश करती हूं। सौन्दर्या शर्मा ने बॉलीवुड में अपनी पारी की शुरुआत 2017 में रिलीज़ हुई 'रांची डायरीज' से की थी जिसमें उनके रोल को काफी सराहा गया था। हाल ही में वे लॉस एंजेलिस के ली स्ट्रासबर्ग थिएटर एंड फिल्म इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करने गई थी।
3 इडियट्स के चतुर, ओमी वैद्य पूरी तरह अमेरिका शिफ्ट हो चुके हैं। हालांकि भारतीय फिल्म और वेब शो के प्रति उनकी चाहत बरकरार है। हाल ही में उन्होंने विदेश से ही लॉकडाउन में भी एक वेब शो के लिए शूटिंग की है। हाल ही में भास्कर से बातचीत में उन्होंने
किस तरह हुई है "मेट्रोपार्क क्वॉरेंटाइन" की शूटिंग
इसकी कहानी आम लोगों में लॉकडाउन और कोरोनावायरस के मिथक पर है। इस कॉन्सेप्ट का आईडिया इरॉस नाउ के अधिकारियों को सबसे पहले आया। उन्होंने यह सोचा कि एक ऐसी सिचुएशन में जब एक्टर्स कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो क्यों ना कोशिश की जाए। लॉकडाउन में रहते हुए भी कुछ काम हो सके। मेरे लिए सिचुएशन और डिफरेंट थी। मेरे पास कोई नौकर या दादा-दादी घर में नहीं थे। बस मेरी वाइफ और दो बच्चे थे। मेरी पत्नी कैमरा लेकर मुझे शूट नहीं करना चाहती थी ऐसे में इरोस वालों को मुझसे ज्यादा मेरी पत्नी को मनाना पड़ा ताकि वो कैमरा लेकर शूट करे।
क्या आपकी पत्नी को पैसे भी मिले?
जी नहीं, पैसे तो मुझे मिले। मैंने वह अपनी पत्नी को दिए। बदले में पत्नी ने ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद दिया। मैंने फिल्म मेकिंग का कोर्स अमेरिका में किया हुआ है। सेट डिजाइनिंग, कैमरे की फ्रेमिंग, बहुत हद तक एडिटिंग भी मुझे आती थी ऐसे में मुझे बस थोड़ा सा गाइड करना पड़ता था।वेब शो में मैं एक कोरोना पेशेंट के रोल में हूं। वह खुद से अपनी 14 दिनों के क्वॉरेंटाइन पीरियड की वीडियो डायरी बनाता है। अपने कमरे को मुझे हॉस्पिटल, घर और ऑफिस जैसा भी दिखाना था। लिहाजा कॉस्टयूम चेंज से लेकर एक ही कमरे को अलग-अलग डिजाइन कर मैंने शूटिंग को अंजाम दिया। मुंबई दिल्ली और अमेरिका तीन अलग-अलग जगहों पर शूटिंग हो रही थी।
आपके हिस्से की शूटिंग कितने दिनों में हो गई?
2 दिनों में मेरे हिस्से की शूटिंग हो गई। मेरे ढेर सारे कॉस्टयूम चेंज रहे। हमने नेचुरल लाइट में ही सब कुछ शूट किया। अभी ऑडियंस थोड़ी बहुत टेक्निकल चीजों में कम क्वालिटी के लिए भी तैयार है। कहानी अच्छी होनी चाहिए तो उन्हें लाइटिंग या कैमरा के फ्रेम से ज्यादा दिक्कत नहीं है। वे उस कॉन्टेंट को भी कंज्यूम कर रहे हैं।
अमेरिका में इसी तरह हो रही है शूटिंग?
जी हां। यहां बड़े-बड़े कलाकार वेबकैम का इस्तेमाल करके शूटिंग कर रहे हैं। लोग अभी वैसा कॉन्टेंट चाह रहे हैं, जो उनकी जिंदगी से रिलेट कर रहा हो। इसलिए बहुत एचडी क्वालिटी वाले कैमरा और स्पेशल इफेक्ट में ही उन्हें चीजें नहीं चाहिए। मिसाल के तौर पर मेरी फिल्म में कोरोना, लॉकडाउन और क्वॉरेंटाइन के कन्फ्यूजन और मिथक की बातचीत है। उससे लोग रिलेट करेंगे और ध्यान भी देंगे।
अमेरिका में भी खुदको कास्ट करते हैं कास्टिंग डायरेक्टर?
बिल्कुल नहीं। बहुत दुर्लभ मौकों पर ऐसा होता है। वहां के कास्टिंग डायरेक्टर्स तो ऐसा सोचना तक गुनाह मानते हैं। कई ऐसे कास्टिंग डायरेक्टर हैं, जिनके तो नाम भी लोगों को पता नहीं चल पाते हैं। कास्टिंग डायरेक्शन के प्रोफेशन को इतना गुप्त रखा जाता है। वे टेक्निकल डिपार्टमेंट के सिनेमेटोग्राफर, एक्शन डायरेक्टर के तौर पर छिपकर रहते हैं।
आप अपने इंडिया के फैंस को क्यों तरसा रहे हैं?
ऐसा नहीं है। मैं यहां काम, अच्छा सीरियल करना चाहता हूं। मैं चतुर के रोल में टाइप कास्ट नहीं होना चाहता था। मैं शूटिंग के लिए चार्टर्ड प्लेन से कहीं जा रहा था। उस दिन मेरा जन्मदिन था, फ्लाइट अटेंडेंट ने आकर मुझे विश किया और केक काटा था। तब मुझे एहसास हुआ कि यह जिंदगी मुझे किस लिए चाहिए।मैं ऐसे मौकों पर अपने लोगों के साथ घिरा होना चाहता हूं। काम के सिलसिले में मुझे बार-बार अमेरिका से मुंबई अपनी फैमिली से दूर आना पड़ता था। मेरी बीवी और बच्चे अमेरिका में सेटल थे। ऐसे में मैंने मुंबई को छोड़कर अमेरिका को ही अपनी कर्मभूमि बना ली।
हिरानी, आमिर खान के संपर्क में रहते हैं?
राजकुमार हीरानी और अभिजात जोशी तो अमेरिका आते रहते हैं। अभिजात जोशी तो वर्जिनियां में रहते भी रहे हैं। उन लोगों से कभी कभी बातचीत हो जाती है। मैं इसलिए उन सबके संपर्क में नहीं रहता कि वह मुझे अगली फिल्म में कास्ट करें, मैं उस तरह का इंसान नहीं हूं। संपर्क बनाने के पीछे मेरा कोई उद्देश्य नहीं रहता है।
कोरोना वायरस के वारियर्स की कहानी जब-जब लिखी जाएगी, तब-तब एक नाम सोनू सूद का भी होगा। लॉकडाउन के दौरान सोनू सूद ने मेडिकल स्टॉफ को रहने के लिए मुंबई स्थित अपना होटल देने से लेकर हजारों जरूरतमंद परिवारों को खाना खिलाने, पंजाब में डॉक्टरों को 1,500 से अधिक पीपीई किट दान करने और अब माइग्रेंट्स वर्कर्स को उनके घर तक पहुंचाने का जिम्मा अपने कंधों पर उठाया है। हाल ही में भास्कर को दिए एक इंटरव्यू में सोनू ने अपने लक्ष्य के बारे में बातचीत की है।
कैसे आया मदद करने का विचार?
जरूरतमंदों की मदद करने का मेरे मन में जो ख्याल था, वह सिर्फ ख्याल ही नहीं, बल्कि वह बहुत बड़ी जरूरत थी। मजदूर भाइयों को देखा कि वे कितनी मुश्किलों से हाईवे पर पैदल चलकर जा रहे थे। कितने एक्सीडेंट हो रहे थे, कितनी जाने जा रही थी। इसके लिए आगे बढ़ना बहुत जरूरी था। एक विश्वास का हाथ, जो उन्हें बता सके कि आप बिल्कुल टेंशन मत लें, हम आपके और आपके परिवार वालों के साथ खड़े हैं। इसके लिए सारी परमिशन लेनी शुरू कर दी। फिर मजदूर भाइयों को विश्वास दिलाया कि आप रुकिए, आप सबको सही सलामत आपके घर भेजूंगा।
एक्सपीरियंस कैसा रहा?
ग्राउंड लेवल पर आना बहुत ज्यादा जरूरी था, क्योंकि जब आप बाहर आते हैं, तभी आपको पता चलता है कि लोग कितनी मुश्किल में हैं। इन लोगों से मिलकर इनकी मदद करने पर इनके बच्चों के चेहरों पर जो खुशी देखी, उसको शब्दों में बयां नहीं कर सकता। लेकिन हम सबको यह पता है कि यह वही लोग हैं, जिन्होंने आपके घर बनाए और जब आज यह जब अपने घर के लिए निकले हैं, तब हमें इनकी मदद किसी भी हालत में करनी है। इसलिए मैं ग्राउंड लेवल पर आया।
देश में मजदूरों के हालात पर क्या कहना चाहेंगे?
उन्हें देखकर बहुत दुख होता है। इतनी मेहनत करने वाले लोग आज हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर का सफर तय कर रहे हैं। वे दुखी हैं। मजदूरों और उनके परिवार वालों पर क्या गुजर रही है, यह इतिहास के पन्नों में लिखा जाएगा कि हमारे देश के जो मजदूर थे, उनकी ,स्थिति कोरोना वायरस के कारण बहुत दुखदाई रही। हम लोग कभी इस बात को भूल नहीं पाएंगे।
क्या सरकार मजदूरों की मदद करने में असफल रही है?
मुझे लगता है कि सरकार को आगे आकर मजदूरों और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। सफर तय करने के लिए जो परमिशन लेनी पड़ रही है, उसे थोड़ा और आसान कर देना चाहिए। फॉर्म भरने के तरीके, मेडिकल जांच और आसान कर देना चाहिए, क्योंकि इसमें उनका बहुत समय जाता है। कई लोग इस प्रक्रिया को करना नहीं चाहते, इसलिए वह पैदल चल पड़ते हैं। और ज्यादा ट्रेन व बसें शुरू कर देनी चाहिए ताकि यह लोग पैदल न चलें और अपने घरों पर सुरक्षित पहुंचे। हालांकि सरकार ने काफी सुविधा देनी शुरू भी की है लेकिन यह थोड़ा-सा पहले हो जाता, तब इतना जो भागदौड़ मची है, उससे बच सकते थे। लेकिन देर आए दुरुस्त आए। मुझे लगता है कि सरकार भी इन लोगों की मदद कर रही है और तमाम चीजों में आगे बढ़ रही है।
खैर, किन सोच के साथ आप मदद करने के लिए आगे आए।
यह प्रेरणा कब और किससे मिली?
यह प्रेरणा माता-पिता से मिली है। मेरी मां इंग्लिश की प्रोफेसर थीं। उन्होंने ताउम्र लोगों को फ्री में पढ़ाया। मेरे फादर ने हमेशा अपने शॉप के सामने लंगर लगाया। माता-पिता से प्रेरणा मिली कि किसी की मदद करनी हो तो आगे बढ़कर उनका साथ देना चाहिए।उसी प्रेरणा से आज लोगों की मदद कर पाया हूं। मैं हरजरूरतमंद की मदद करना चाहता हूं। जब तक आखिरी मजदूर अपने घर तक नहीं पहुंचता, तब तक मैं लगा रहूंगा।
आगे क्या-क्या करने वाले हैं?
आगे प्लान कर रहा हूं कि जो लोग इंजर्ड हुए हैं, जिन लोगों की जानें गई हैं, उनकी और उनके परिवार की किस तरह से मदद कर सकते हैं। मैं मदद करने की पूरी कोशिश में हूं। प्लानिंग अभी कुछ भी नहीं है, लेकिन यह है कि जब तक सबको सही सलामत उनके घर नहीं पहुंचा देता और सबकी मदद नहीं कर देता, तब तक मेहनत करते रहना पड़ेगा। नहीं तो लोगों को बहुत तकलीफ होगी। यह जिम्मा मैंने अपने कंधों पर उठाया है। कोशिश है, सब तक मदद पहुंचे। सब अपने घरों में खुशी रहे। यह जो हालात है, वह वापस नॉर्मल हो पाए।
इस साल ईद के मौके पर भले ही सिनेमाघर में कोई फिल्म रिलीज नहीं हो रही है, लेकिन नवाजुद्दीन सिद्दीकी, रागिनी खन्ना, अनुराग कश्यप, इला अरुण, रघुवीर यादव स्टारर फिल्म 'घूमकेतु' ईद से पहले ही 22 मई को जी5 पर रिलीज हुई है। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, सोनाक्षी सिन्हा, रणवीर सिंह, चित्रांगदा सिंह आदि फेमस स्टार्स कैमियो अपीयरेंस में नजर आएंगे। ऐसे में हाल ही में भास्कर से बातचीत के दौरान नवाजुद्दीन ने करियर और फिल्म से जुड़ी कई बातें शेयर की हैं।
कैसा रहा है करियर स्ट्रगल?
मैं छोटे-से गांव से मुंबई आया था। यहां आकर मुझे लगता था कि जो लोग हैं वो बहुत टू द प्वाइंट हैं। उनके साथ एडजस्ट करने में बहुत टाइम लग गया। मुंबई काफी एडवांस और फास्ट है। यहां हमारे जैसे लोगों को एडजस्ट करने और घुलने-मिलने में टाइम लगता है। इस वजह से बहुत धक्के भी खाने पड़े, क्योंकि उस स्पीड को हम मैच नहीं कर पा रहे थे। हां, घूमकेतु में मैंने एक स्ट्रगलर राइटर का किरदार किया है, उसी तरह मैंने बतौर एक्टर स्ट्रगल किया है। इसलिए इस कैरेक्टर और मेरी लाइफ में बहुत कनेक्शन है।
ओटीटी में आकर सिनेमाघर को किया याद?
फिल्म करते समय कभी यह नहीं सोचा जाता कि वह सिनेमाघर, टीवी या ओटीटी पर आएगी। एक एक्टर बड़ी ईमानदारी के साथ अपना काम करता है। उसके सामने सबसे बड़ा टास्क यह होता है कि वह कितनी ईमानदारी से परफारमेंस देता है। मेरा तो इसी चीज पर फोकस रहता है। फर्क नहीं पड़ता कि वह कहां पर और कब रिलीज होगी, कितने थिएटर में रिलीज होगी या उसकी पब्लिसिटी कितनी होगी।
'फिल्म कहां रिलीज होगी ये प्रोड्यूसर का काम'-नवाज
ये सारा काम डिस्ट्रीब्यूटर और प्रोड्यूसर का होता है कि फिल्म कहां रिलीज होगी और उसकी कितनी पब्लिसिटी होगी। इससे मेरा कोई सरोकार और लेना-देना नहीं होता है। वे अगर मुझे प्रमोशन के लिए बुलाते हैं तो मैं चला जाता हूं। हां, सिनेमाघर में फिल्म रिलीज न होना मैं जरा भी मिस नहीं कर रहा हूं, क्योंकि यह वक्त की जरूरत है। अभी ओटीटी का कद बहुत बड़ा हो चुका है। हां, यह बात जरूर है कि सिनेमाघर में बैठकर फिल्म देखने का जो सिनेमैटिक अनुभव होता है वह कहीं मिस होता है। आप अगर लैपटॉप या आईपैड में फिल्म देखते हुए एंजॉय करते हैं तो वह मजा आपके आसपास ही रहता है।
आने वाले सालों में क्या होगी ओटीटी की स्थिति
यकीनन ओटीटी का बहुत बड़ा कद है, इसमें कोई शक नहीं है। पूरे वर्ल्ड का सिनेमा आज आप अपने घर में बैठकर देख रहे हैं, यह शायद पहले कभी सोच भी नहीं सकते थे। लॉकडाउन के दौरान मैं अब तक 90 पिक्चर देख चुका हूं। और भी देख रहा हूं और आगे भी देखूंगा। मुझे लगता है कि हमारा सिनेमा पहले जैसा न हो तो ज्यादा अच्छा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस लॉकडाउन में हर इंसान को दुनियाभर के सिनेमा देखने का मौका मिला है। चाहे वह नेटफ्लिक्स हो या अमेजन, इसके जरिए पूरा वर्ल्ड आपकी पिक्चर देख सकता है। मतलब आपका सिनेमा अच्छा है तो पूरा वर्ल्ड आपकी उसे देखने के लिए तैयार है।
भूमि पेडणेकर 'डॉली किट्टी और वो चमके सितारे' में निभाए गए अपने किरदार के साथ खुद की अजीब समानता देख कर आश्चर्यचकित हैं। लॉकडाउन के चौथे फेज तक भूमि यादों के सफर पर निकलीं तो उनको लंबे अरसे से खोई हुई स्कूल के दिनों की स्क्रैपबुक मिल गई, जो उनके लिए एक बहुतबड़ा पल था।
भूमि कहती हैं- इतना अधिक समय मिल रहा है कि आप इसका इस्तेमाल खुद को व्यवस्थित करने के लिए कर सकते हैं। और यह सिर्फ अपनी जगह को व्यवस्थित करने की बात नहीं है, बल्कि अपने मन को भी साफ-सुथरा कर सकते हैं। मैं अपने पुराने घर में एक ट्रंक साफ कर रही थी और तभी मेरे स्कूल की एक स्क्रैपबुक हाथ लग गई।
एक्टिंग कॉलेज का मेरा पहला डीवीडी ऑडिशन टेप, मेरी लिखी पहली स्क्रिप्ट भी इसी दौरान मिली। मैं बेहद नॉस्टैल्जिक महसूस कर रही थी। ‘डॉली किट्टी’ फिल्म में मेरा किरदार अपनी स्क्रैपबुक के साथ कुछ ऐसा ही करता है और यह पल अनूठा था। एक एक्टर के रूप में आप को अपने जीवन के कई अनुभव फिर से जीने को मिलते हैं और सिनेमा की यही चीज मुझे बेहद भाती है।
लॉकडाउन की लाइफ के बारे में बात करते हुए भूमि ने शेयर किया- फर्स्ट वीक बड़ा अजीब था। चूंकि मेरा रूम सड़क की तरफ है तो आमतौर पर बहुत शोरगुल रहता था, लेकिन अचानक वहां खामोशी छा गई। हालांकि धीरे-धीरे 2-3 दिनों में उस शोर की जगह पक्षियों की चहचहाहट ने ले ली। लॉकडाउन का पहला हफ्ता पागलपन भरा था। हम सब वायरस के बारे में ही बातें करते रहते थे। उसकी बात तो हम अभी भी करते हैं, लेकिन अब हमने इससे निपटने का तरीका निकाल लिया है। इतने सारे लोग जो कुछ भुगत रहे हैं, उसके बारे में सहानुभूति रखें।
भूमि हर दिन शाम 6 बजे से अपनी मां सुमित्रा और बहन समीक्षा के साथ पूरी तरह जुट जाती हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो वह घर का कंट्रोल अपने हाथों में ले लेती हैं। उनका कहना है- “मुझे अपना रूम और घर सजाना बहुत पसंद है - हमेशा कोई म्यूजिक बजता रहता है, मैं कैंडिल जलाती हूं। इसलिए शाम 6 बजे के बाद घर पर मेरा नियंत्रण होता है, क्योंकि मेरे लिए यह जिंदा रहने का एक तरीका है। आपको पॉजिटिव बने रहना होगा और सकारात्मकता फैलानी होगी।
वेब सीरीज 'मस्तराम' की सफलता को देखते हुए इसके दूसरे सीजन को बनाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी गई है। इसके राइटर्स ने कहानी लिखनी शुरू कर दी है। हां, यह अलग बात है कि इस बार कोविड-19 को देखते हुए इसके पहले सीजन में जितने अंतरंग सीन थे, वह दूसरे सीजन में काट-छांट कर कम कर दिए जाएंगे। इसकी कहानी की शुरुआत वहीं से होगी जहां पर पहला सीजन खत्म हुआ था। इसके लीड एक्टर अंशुमन झा हैं, जिन्होंने पहले सीजन में राजाराम का किरदार निभाया है।
तीन महीने बाद शुरू होगी शूटिंग
सीरीज के लेखक आर्यन सुनील बताते हैं, 'मस्तराम सीजन-2 का फोकस ज्यादातर राजाराम के किरदार पर होगा और जहां पर सीजन वन खत्म हुआ था, वहीं से सीजन-2 की शुरुआत करेंगे। हमें यह नहीं पता कि आगे तीन महीनों में कोरोना वायरस की स्थिति क्या होगी, पर तीन महीने के बाद हम इसकी शूटिंग करने के बारे में सोच रहे हैं। फिलहाल इंटीमेट सीन छोड़कर स्टोरी लिख रहा हूं। इसके इंटीमेट सीन तीन महीने बाद लिखेंगे, जब कोरोना वायरस की स्थिति साफ होगी। आगे चलकर जो भी स्थिति होगी, उसके अनुसार इंटीमेट सीन जुड़ेंगे'।
सीरीज में मुख्य किरदार निभाने वाले अंशुमन झा कहते हैं, 'मस्तराम की सफलता के बाद हम इसका सीजन- 2 बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसमें सारा फोकस राजाराम की लव लाइफ पर होगा, जो सीजन वन में भी दिखाई गई है। मेरा किरदार मस्तराम का है, जो एरोटिक किताबें लिखता है और यह लोगों के बीच काफी मशहूर हो जाती हैं। हां, इंटीमेट सीन शूट करने के लिए मुझे काफी सतर्कता बरतनी पड़ेगी। शूटिंग से घर लौटने पर मैं नहीं चाहूंगा कि मेरी गर्लफ्रेंड मुझे हग करें। मैं सेट से लेकर घर तक एक प्रॉपर प्रोटोकॉल फॉलो करूंगा, क्योंकि इस समय सेफ्टी ही सबसे ज्यादा प्रायोरिटी है'।
'गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के चलते इंडस्ट्री ने उन कलाकारों को पहचाना, जो चंद मिनटों के रोल में आते थे। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी के साथ-साथ विपिन शर्मा, जयदीप अहलावत और विनीत कुमार। मजे की बात देखें कि यह सभी आज की तारीख में वेब शोज के चमकते सितारे हैं। 24 मई से नेटफ्लिक्स पर विनीत कुमार ‘बेताल’ लेकर आ रहे हैं। बेताल शाहरुख खान के रेड चिल्लीज बैनर से है। हाल ही में विनीत कुमार ने दैनिक भास्कर से अपने सफर और इस वेब शो में किरदार को लेकर चर्चा की है।
पहला वेब शो है, जहां कहानी में जीवित आर्मी मर चुके फौज से लड़ती है?
जी हां और मैं उस जीवित सीआईपीडी आर्मी को लीड करता हूं। किरदार का नाम विक्रम सिरोही है। एक मरी हुई आर्मी जो जोंबी बनी हुई है। बिना ट्रेनिंग के उस तरह के एंबुश से मेरा किरदार कैसे लड़ता है और आगे बढ़ता है, वह बेताल में दिखाया गया है।बेताल विलेन है या एक किवदंती है?यह हर किसी का एक रूपक है। जो एक्शन अपने अतीत में करता है, उसका रिएक्शन उस वक्त नहीं तो कई सालों, दशकों और सदियों बाद सामने आता है। एक ओवर ऑल सबक है कि कुछ भी करने से पहले सोचिए समझिए।
शूटिंग में क्या चैलेंजेस आए
मुंबई से दूर हमने लोनावला के पहाड़ में सेट बनाया। बेताल का पहाड़ माउंट किया गया। वहां से फिर हम इगतपुरी शिफ्ट हुए। वहां हमें एक ऐसी टनल मिली, जो सैकड़ों साल पुरानी है। बड़ा कमाल का टनल है वो। वहां शूट करना रोमांचक और डरावना दोनों है। फिर भी हम लोग वही शूट करते रहे और वही उस सुनसान जगह पर सब लोग रहे भी। बरसात के मौसम में हम लोगों ने जंगलों में भी शूटिंग की। उस दौरान बड़े-बड़े बिच्छू और सांप हमारे सामने रहते थे। पर नेटफ्लिक्स से सेफ्टी के इंतजामात बड़े अच्छे थे कि हंसते खेलते शूट पूरा हो गया। नेटफ्लिक्स और रेड चिलीज ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म और प्रोडक्शन हाउस जहां कलाकार को वक्त से पहले पैसे दे दिए जाते हैं।
शाहरुख खान की किस तरह इंवॉल्वमेंट रहती थी?
मैं बार्ड ऑफ ब्लड मे भी उनके बैनर में काम कर चुका हूं। जिस शिद्दत के साथ वह एक्टिंग करते हैं, उतने ही जुनून से वह बतौर प्रोड्यूसर भी अपनी टीम के साथ खड़े रहते हैं। अपने एक्टर्स की वह बहुत इज्जत करते हैं। यशराज में हम लोगों का एक शेड्यूल था उस दिन वह सेट पर भी आए थे। मुझे गाड़ी लेने जाना था जिसमें मुझे देर हो गई। सेट पर आते ही उन्होंने पहला सवाल किया ‘नई गाड़ी ले ली विनीत’। उसके बाद उन्होंने कहा तुम 'बॉर्ड ऑफ ब्लड' में बहुत अच्छे लग रहे हो। उस वक्त तक 'बार्ड ऑफ ब्लड' रिलीज नहीं हुई थी। पर शूटिंग कि उन्हें पल-पल की खबर थी और सब लोगों ने जब उन्हें कहा कि विनीत ने अच्छा किया है तो उन्होंने बाकायदा खुद एडिट रूम में जाकर उसके फुटेज देखे और तारीफ की।
दूसरे देशोंसे कैसा रिस्पॉन्स मिला?
खासतौर पर बलूचिस्तान से काफी फैंस के कॉम्प्लीमेंट मुझे मिले। वह लोग पर्सनल प्रॉब्लम तक शेयर करते हैं। उन्हें मैं पब्लिक लाइफ में नहीं बता सकता। और भी कंट्रीज से लोगों ने कंपलीमेंट दिए हैं।
विक्रम सिरोही ने टीम को किस तरह लीड किया?
हमारी ट्रेनिंग इंडोर हुई। रेड चिलीज के ऑफिस में ही। तकनीकी तौर पर सीआईपीडी का मैं सेकेंड इन कमांडर हूं। आप कोई एंबुश करते हैं तो वह ग्रुप में करते हैं। उस एंबुश में ग्रुप कैसे बनाया जाता है। अटैक कैसे करना है तो इसकी ट्रेनिंग लंबी रही।